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पराक्रमी होना ही मानव जीवन ही सार्थकता है।

 लेखक :  

अरुण आनंद, वाराणसी

एक बहस जो अक्सर सुनने को मिलती है वो ये की ‘एक बहुत पढ़ा लिखा और सफल पुरुष, अनपढ़ या कम पढ़ी-लिखी लड़की से शादी तो कर लेगा परन्तु एक अधिक पढ़ी लिखी और सफल स्त्री,  किसी अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लड़के से शादी कभी नहीं करेगी।’ (अपवाद हर जगह है)
तो इसे हम कुछ इस तरह समझें की सूक्ष्म तल पर स्त्री और पुरुष में कोई भेद नहीं, जो भी भिन्नताएं हैं वो स्थूल तल अथवा शारीरिक तल हैं। उन्हीं में से एक भिन्नता है स्त्री के लिए सौंदर्य प्रमुख गुण है और पुरुष के लिए पराक्रम प्रमुख गुण है और सौंदर्य हमेशा पराक्रम की शोभा बढाती है।
इसलिए सभी लड़को से कहना है इस बेकार की बहस से बचिए और पराक्रमी (सफल) बनिए। 

नोट: स्त्रीशक्ति से आग्रह है कि ये बिलकुल ना समझे की यहाँ मैं ये कह रहा हूँ स्त्रियों को पराक्रमी नहीं होना चाहिए। पराक्रमी होना ही मानव जीवन ही सार्थकता है।

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