बदलते रूप हैं हर पल यहाँ दिलकश नज़ारों के- ग़ज़ल
रचयिता: हमीद कानपुरी (अब्दुल हमीद इदरीसी), कानपुर, उत्तर प्रदेश
बदलते रूप हैं हर पल यहाँ दिलकश नज़ारों के।
हमेशा एक से रहते नहीं हैं दिन बहारों के।
कभी जाड़ा कभी गर्मी कभी बरसात का मौसम,
उसी के साथ बदलें रंग दुनिया के बज़ारों के।
जतन हरदम किये हमने जहाँ जो हो सके मुमकिन,
कभी बैठे नहीं हरगिज़ सहारों पर सहारों के।
डगर वीरान सी दिखती कुकर्मो से किसी के तो,
कभी गुज़रे यहाँ से क़ाफ़िले भी शह सवारों के।
विदा होती है दुल्हन आजकल लकदक सी कारों में,
नहीं डोली में अब दिखते यहाँ कांधे कहारों के।