ये जाम भी नशा ना देगा।
रचयिता: जितेन्द्र हमदर्द, लखनऊ
अब तू ही बता मेरे दिल,उसके बिना क्या जीना।
यह जाम भी नशा ना देगा,जब उसके बिना पीना।
बोतल का नशा अब चढ़ता नही,
अब तेरे सिवा कुछ दिखता नही।
जब दिल टूट गया तो अब टुकड़ों को क्या सीना।
अब तू ही बता मेरे दिल,उसके बिना क्या जीना।
यह जाम भी नशा ना देगा,जब उसके बिना पीना।
शराब के हवाले जिंदगी कर दी।
बोतल में अपनी जवानी भर दी।
जब जान ले गयी वो फिर किस के लिए जीना।
अब तू ही बता मेरे दिल,उसके बिना क्या जीना।
यह जाम भी नशा ना देगा,जब उसके बिना पीना।
इतना बता देती हम कैसे जिये।
हँसी दफ़न कर दी मैन तेरे लिए।
जिया सिर्फ तेरे लिए फिर साँसों को मेरी क्यों छीना।
अब तू ही बता मेरे दिल,उसके बिना क्या जीना।
यह जाम भी नशा ना देगा,जब उसके बिना पीना।