कलम से कमाल करने वाले कलमकार थे- बहुमुखी प्रतिभा के धनी अमृतलाल नागर
लेखक : तरुण कुमार दाधीच, वरिष्ठ साहित्यकार, उदयपुर
हिंदी साहित्य के आधुनिक काल में प्रमुख गद्य लेखकों में अमृतलाल नागर का महत्वपूर्ण स्थान है। आपने साहित्य की जिन भी विधाओं में कलम चलाई, उनमें उन्होंने अपार ख्याति अर्जित की। अमृतलाल नागर का जन्म 17 अगस्त 1916 को गोकुलपुरा, आगरा में हुआ। आपके पिताजी का नाम राजाराम नागर तथा माता का नाम विद्यावती नागर था। आपने प्रतिभा नामक युवती से शादी की। आपके चार संतान कुमुद नागर,शरद नागर,डा.अचला नागर और श्रीमती आरती पंड्या हैं। डा.अचला नागर ने साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया और एक सफल लेखिका सिद्ध हुई।उस समय पंडित राजाराम जी नागर के यहां अनेक साहित्यकारों का आना जाना था। इस प्रकार बचपन से ही अमृतलाल नागर को साहित्यिक परिवेश मिला।
यद्यपि आपने हाईस्कूल तक की पढ़ाई ही की लेकिन स्वाध्याय से अनेक विषयों का गहन अध्ययन किया। इसके अलावा हिंदी, गुजराती, बांग्ला, मराठी, अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।
आपके पिताजी का स्वर्गवास होने के कारण घर की जिम्मेदारी इनके कंधों पर आ गई। परिणामस्वरूप आपको बीमा विभाग में नौकरी करनी पड़ी। यहां कुछ दिन रहने के बाद 1940 में अपना भाग्य आजमाने मुंबई आ गए। मुंबई में आपने सात वर्षों तक कार्य किया और अपना नाम कमाया। आपकी प्रतिभा से प्रभावित होकर भारत सरकार ने आपको आकाशवाणी, दिल्ली में नाट्य विभाग में प्रोड्यूसर पद पर नियुक्ति दी। अपना दायित्व निभाने के साथ साथ आप लेखन कार्य में सदैव संलग्न रहे।
आपकी पहली कहानी “प्रायश्चित” शीर्षक से “आनन्द” में प्रकाशित हुई। इसके बाद आपका पहला कहानी संग्रह “वाटिका” प्रकाशित हुआ। आपने हास्य व्यंग्य की पत्रिका “चकल्लस” का संपादन किया। हिंदी साहित्य के पुरोधा समीक्षक,आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने “चकल्लस” पर नागर जी की प्रशंसा करते हुए कहा,”चकल्लस”का आठवां अंक देखकर मेरा मुर्दा दिल भी जिंदा सा हो उठा,इस अंक में हास्य रस प्रधान कितने ही लेख बड़े मौके के हैं। कविताएं भी उसी रस से सराबोर हैं।”
अमृतलाल नागर जी के व्यक्तित्व पर छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा ने उनके सम्मान में एक कविता लिखी। उस कविता की अंतिम पंक्ति है,
“जैसा काम तुम्हारा वैसे ही तुम अमृतलाल हो।”
आप एक प्रतिभाशाली साहित्यकार थे। आपने कहानी, नाटक, हास्य व्यंग्य लिखे किंतु मूल रूप से आप एक उपन्यासकार ही थे। आपने राजनीतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक सभी प्रकार के उपन्यास लिखे। उनके सभी उपन्यासों में सामाजिक चेतना के दर्शन होते हैं।
हिंदी के उच्च कोटि के साहित्यकार और आलोचक डा.रामविलास शर्मा ने उनके बारे में लिखा है, “नागर जी जो बात कहते हैं,बेलाग कहते हैं,वह बेलागी होती है और उसे वह मुंह पर कहते हैं। मुझसे ही नहीं, वर्षों से, बहुतों से उनकी दोस्ती है,शायद उनका रहस्य यही है,वे अपनी पीढ़ी के तमाम लेखकों को जोड़ने वाले और पुरानी पीढ़ी के साहित्यकार हैं।”
वास्तव में देखा जाय तो अमृतलाल नागर जी ने बहुत ही उच्च कोटि का लेखन किया। आपके उपन्यासों में “अमृत और विष” बहुत प्रसिद्ध हुआ और आपको अपार ख्याति अर्जित हुई। आपके अन्य उपन्यासों में “मानस का हंस”, “खंजन नयन”, “नाच्यौ बहुत गोपाल”, “अग्निगर्भा”, “पीढ़ियां”, “करवट”, “सुहाग के नुपूर”, “बूंद और समुद्र”, “शतरंज के मोहरे”, “सात घुंघट वाला मुखड़ा”, “एकदा नैमिषारण्ये” आदि थे।
अमृतलाल नागर ने अपने उपन्यासों में सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्रीय और दार्शनिक दृष्टि से जिस लगन और गहराई के साथ समाज की यथार्थ स्थिति का जो चित्रण किया है वैसा कम ही देखने को मिलता है। “अमृत और विष” शिल्प और औपन्यासिक तत्वों की दृष्टि से लोकप्रिय उपन्यास माना जाता है। “नाच्यौ बहुत गोपाल” में सामाजिक जीवन का बहुत ही शानदार चित्रण है तो “एकदा नैमिषारण्ये”,”खंजन नयन”,”मानस का हंस” पौराणिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखे उत्कृष्ट उपन्यास हैं। “बूंद और समुद्र” उपन्यास को मुंशी प्रेमचंद जी के “गोदान” के बाद भारतीय जीवन का दूसरा महाकाव्य कहा जाता है। यह नागर जी का प्रतीकात्मक उपन्यास है। बूंद व्यक्ति का प्रतीक है तो समुद्र विशाल समाज का प्रतीक है। अमृतलाल नागर जी के अनुसार बूंद से ही सागर का अस्तित्व है इसलिए सागर से अधिक महत्व बूंद का है। इस जीवन दर्शन को कथानक के माध्यम से आपने बहुत ही कुशलता के साथ अभिव्यक्त किया है।
“बूंद और समुद्र” पर सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा.रामविलास शर्मा ने उनके बारे में लिखा है- “हिंदी के कुछ लेखक मार्क्सवाद पर पुस्तकें भी लिख चुके हैं लेकिन उनके पत्र वैसे सजीव नहीं होते, जैसे गांधीवादी लेखक अमृतलाल नागर के सेठ बंके मल या बूंद और समुद्र की ताई। इसका कारण यह है कि मार्क्सवाद या गांधीवाद ही किसी लेखक को कलाकार नहीं बना देता। कथाकार बनने के लिए मार्मिक अनुभूति आवश्यक है जो जीवन के हर पहलू को देख सके। सामाजिक जीवन की जानकारी ही नहीं होगी तो दृष्टिकोण बेचारा क्या करेगा!”
इसके अलावा अमृतलाल नागर जी ने एक कहानीकार के रूप में भी अपार ख्याति प्राप्त की। उन्होंने अपनी कहानियों में न तो पुरातन को नकारा है और न ही आधुनिकता से परहेज किया है। आपने “वाटिका”, “पांचवां दस्ता”, “एक दिल हजार दास्तां “, “तुलाराम शास्त्री “, “आदमी, नहीं! नहीं!”, “एटम बम “, “पीपल की परी “, “सिकंदर हार गया “, “भारतपुत्र नौरंगीलाल” जैसे कहानी संग्रह लिखे।
आपके नाटकों में “चढ़त न दूजो रंग”, “चंदन वन”, “युगावतार”, “नुक्कड़ पर”, “बात की बात”, “उतार चढ़ाव” हैं जो बहुत लोकप्रिय हुए।
अमृतलाल नागर जी ने इसके अलावा कुछ अन्य पुस्तकें भी लिखीं। इनमें “गदर के फूल”, “ये कोठेवालियां”, “जिनके साथ जिया”, “चैतन्य महाप्रभु”, “टुकड़े टुकड़े दास्तान”, “साहित्य और संस्कृति”, “अमृत मंथन”, “अमृतलाल नागर रचनावली”, “फिल्म क्षेत्रे, रंग क्षेत्रे”, “अत्र कुशलं,तत्रास्तु” प्रमुख हैं।
आपने अनुवाद कार्य भी बहुत ही कुशलता से किया। “बिसाती”, “प्रेम की प्यास”, “काला पुरोहित”, “आंखों देखा गदर”, “सारस्वत”, “दो फक्कड़” जैसी कृतियों का अनुवाद किया।
आपने चकल्लस के अलावा “सुनीति”, “सिनेमा समाचार”, “अल्लाह दे”, “नया साहित्य”, “प्रसाद”, “सनीचर” आदि पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया।
अमृतलाल नागर जी एक उच्च कोटि के बाल साहित्यकार भी थे। बच्चों के लिए आपने “बजरंगी पहलवान”, “अक्ल बड़ी या भैंस”, “फूलों की घाटी”, “त्रिलोक विजय”, “सतखंड़ी हवेली का मालिक”, “नटखट चाची”, “बाल महाभारत”, “बाल दिवस की रेल”, “सात भाई चंपा”, “सोनू का जन्मदिन”, “शांतिनिकेतन के संत का बचपन”, “बजरंग स्मगलरों के फंदे में” आदि बाल कहानी संग्रह लिखे। नयी पीढ़ी के कर्णधारों के लिए उनका यह योगदान अविस्मरणीय रहेगा क्योंकि बच्चों के लिए लिखना एक बहुत बड़ी बात है। बच्चों के जीवन मूल्यों में वृद्धि करने की दृष्टि से उनका बाल साहित्य उल्लेखनीय रहा। आजकल के हलचल भरे व्यस्त जीवन में माता पिता का यह दायित्व है कि वे अपने बच्चों की रुचि को ध्यान में रखते हुए अच्छा बाल साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करें। सर्वश्रेष्ठ बाल साहित्य वही कहा जा सकता है जो बच्चों का हर दृष्टि से सर्वांगीण विकास करने में सहायक हो। इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है कि बच्चों की रुचि क्या है और वे किस प्रकार का बाल साहित्य पढ़ना चाहते हैं। पाठ्य पुस्तकों के अलावा बच्चे यह चाहते हैं कि उन्हें मनोरंजन के लिए अच्छी पुस्तकें और पत्र पत्रिकाएं पढ़ने को मिले। अमृतलाल नागर जी की दृष्टि में अच्छा बाल साहित्य वही है जो बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास करे और जिससे उनमें अच्छी भावनाओं की वृद्धि हो। नैतिक शिक्षा,सरल जीवन,साहस, प्रेम,दया, कर्तव्यबोध और समसामयिक घटनाओं से युक्त बाल साहित्य के माध्यम से बच्चों पर बढ़ते हुए पाश्चात्य प्रभाव को कम किया जा सकता है।
वर्तमान परिवेश में बाल साहित्यकारों का यह मानना है कि वास्तविक जीवन से निकटता रखने वाला बाल साहित्य बच्चों को रुचिकर लगता है और उनके मन में स्थाई रूप से प्रेम,दया, वीरता आदि भावनाओं का विकास होता है। बच्चों की रुचि को प्रभावित करने वाला और अच्छे संस्कार विकसित करने वाला बाल साहित्य सर्वोत्तम बाल साहित्य कहा जाता है क्योंकि प्रेरणादायक, उपयोगी बाल साहित्य पर सुकुमार एवं भावी पीढ़ी का भविष्य अवलंबित है।
आपको अपनी साहित्य सेवाओं के लिए 1947 में “अमृत और विष” उपन्यास पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके बाद आपको 1970 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार मिला। 1982 में आपको “पद्मविभूषण” से नवाजा गया।
इसके अलावा आपको बिहार सरकार ने 1986 में “डा.राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान” एवं 1989 में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी आपको साहित्यक सेवाओं के लिए सम्मानित किया।
नवांकुरों और शोधकर्ताओं को उनकी कृतियों का अध्ययन करना चाहिए। “मानस का हंस” और “खंजन नयन” आपके गोस्वामी तुलसीदास जी पर और महाकवि सूरदास जी पर लिखे गए बेहतरीन उपन्यास हैं। भक्ति युग की सगुण भक्ति धारा के प्रमुख एवं प्रतिनिधि कवि तुलसीदास जी और सूरदास जी पर इन कृतियों से उन्हें ज्ञान अर्जित होगा। आज के अभिभावकों को अपने बच्चों के लिए उनके द्वारा रचित बाल साहित्य अवश्य उपलब्ध कराना चाहिए।
अमृतलाल नागर जी ने अपनी साहित्य साधना में नवीन कीर्तिमान स्थापित किए। उनके उपन्यास साहित्य का मूल स्रोत समाज, संस्कृति और जनजीवन रहा। यह हम जानते हैं कि जनजीवन और संस्कृति समाज में समाहित रहती है और वही समाज के अस्तित्व के मूल में होती है। नागर जी के उपन्यासों के अध्ययन के बाद यह देखा गया है कि उन्होंने समाज, संस्कृति और जनजीवन सार्थक समावेश किया है। इसी कारण उनके उपन्यासों ने अपार प्रसिद्धि अर्जित की। नागर जी हिंदी साहित्य में गंभीर लेखकों में शुमार रहे। उनकी कृतियों में किस्सागोई यत्र तत्र उपलब्ध हो जाती है और पाठकों को आकर्षित करती है।उनके उपन्यासों में हम उनकी चिंतन पद्धति का क्रमबद्ध विकास देख सकते हैं। विषय और शिल्प की दृष्टि से भी उनकी प्रतिभा के दर्शन होते हैं। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अमृतलाल नागर जी हिंदी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और साहित्य जगत में वे सदैव अविस्मरणीय बने रहेंगे।